भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है, खासकर महानगरों में। बढ़ता औद्योगिकीकरण, वाहनों से होने वाला धुआँ, और निर्माण कार्य इसके प्रमुख कारण हैं। इसका सबसे अधिक असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। हवा में मौजूद सूक्ष्म कण, जैसे PM2.5 और PM10, सांस के रास्ते हमारे फेफड़ों में जाकर गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य श्वसन रोगों का खतरा बढ़ रहा है।
सरकार और विशेषज्ञ इस चुनौती का समाधान ढूंढने के लिए नई योजनाओं पर काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर ‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ (NCAP) जैसे कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य अगले कुछ सालों में प्रदूषण के स्तर को 20-30% तक घटाना है। इसके साथ ही, लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अभियानों की शुरुआत की गई है ताकि वे व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रदूषण कम करने में योगदान दे सकें, जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग, प्लास्टिक का कम उपयोग, और अधिक पेड़ लगाना।
बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए डॉक्टर भी मास्क का इस्तेमाल करने और घर के अंदर हवा को शुद्ध रखने की सलाह दे रहे हैं। इन सब प्रयासों का उद्देश्य है वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों में कमी लाना और नागरिकों को स्वस्थ जीवन प्रदान करना।
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